महात्मा गांधी के जीवन के अंतिम अड़तालीस घंटों की झलकियां
बृहस्पतिवार, 29 जनवरी, 1948 गांधीजी के लिये गतिविधियों से भरा व्यस्त दिन था। दिन ढलने तक वे थक कर निढाल हो गए थे। उन्हें चक्कर आ रहे थे। “फिर भी मुझे यह पूरा करना ही है,” उन्होंने कांग्रेस के संविधान के मसौदे की ओर इशारा करते हुए कहा। लगभग सवा नौ बजे वे सोने के लिये उठे। आज बापू बहुत ही अनमने से थे और मनु से उन्होंने एक उर्दू का शेर कहा जिसका अर्थ था: “दुनिया के बग़ीचे की बहार बहुत थोड़े दिनों के लिये होती है। थोड़े दिनों के लिये ही इसे देखो।”
शुक्रवार 30 जनवरी को वे सदा की तरह सुबह 3.30 बजे प्रार्थना के लिये उठ गए। महात्मा गांधी के जीवन का अंतिम दिन भी उनके अन्य दिनों जैसा ही सुव्यवस्थित और व्यस्त रहने वाला था। अपनी लकड़ी की चैकी से उठकर उन्होंने अपने दल के अन्य सदस्यों को जगाया। दल के साथी थे बृजकृष्ण, चांदीवाला, मनु तथा आभा उनकी प्रपौत्रियाँ। उनकी चिकित्सक डाॅ. सुशीला नैयर जो अक्सर उनके साथ होती थीं, पाकिस्तान में थीं। गांधीजी ने एक सामान्य भारतीय के ही समान दातुन से दाँत साफ किये।
प्रार्थना के बाद अपनी प्रिय “लाठियां”, मनु और आभा का सहारा लेकर वे धीरे-धीरे अन्दर के कमरे में आ गए जहाँ मनु ने उनके पैरों को कम्बल से ढक दिया। बाहर अभी भी अन्धेरा ही था मगर गांधीजी की दिनचर्या आरम्भ हो चुकी थी। पिछली रात के लिखे कांग्रेस के संविधान के मसौदे को उन्होंने ठीक किया। यही वह दस्तावेज़ था जो उनकी अंतिम वसीयत और वक्तव्य कहलाया। प्रातः 4.45 बजे उन्होंने एक गिलास नींबू, शहद और गुनगुने पानी का सेवन किया और एक घंटे बाद अपना दैनिक सन्तरे का रस पिया। काम करते हुए, उपवास के कारण आई कमज़ोरी की वजह से वे थक गए और थोड़ी देर के लिये सो गए।
आधे घंटे बाद ही उठकर गांधीजी ने अपनी पत्राचार की फाइल मांगी। पिछले दिन उन्होंने किशोरलाल मशरूवाला को एक पत्र लिखा था। अपने उपवास के दौरान ही गांधीजी को बहुत खांसी हो गई थी। उसको ठीक करने के लिये वे लौंग के चूर्ण के साथ गुड़ की गोली ले रहे थे। लेकिन सुबह तक लौंग का चूर्ण ख़त्म हो गया था। बापू के साथ कमरे में टहलने की जगह मनु खांसी की गोलियाँ बनाने बैठ गईं। “मैं अभी आपके साथ आती हूँ,” उन्होंने गांधीजी से कहा, “वरना रात के लिये ज़रूरत पड़ने पर कोई दवा नहीं होगी।” मगर सदा वर्तमान को महत्व देने वाले गांधीजी ने कहा “कौन जाने रात से पहले क्या होने वाला है। मैं ही जीवित रहूँगा या नहीं। यदि रात को मैं जीवित रहा तो तुम उस समय दवाई आसानी से बना लेना।”
गांधीजी की पहली भेंट सुबह 7 बजे राजन नेहरू से थी जो अमेरिका जा रही थीं। गांधीजी ने उनसे अपने कमरे में दैनिक कामकाज के बीच ही बातचीत की। अभी उनमें अपने नियमित खुली हवा में सैर करने की शक्ति वापस नहीं आई थी।
प्रातः आठ बजे, वे अपनी मालिष के लिये तैयार हुए। प्यारेलाल के कमरे के सामने से गुज़रते हुए उन्होंने अपने द्वारा पिछली रात को तैयार किया हुआ कांग्रेस का नया संविधान उन्हे संषोधन के लिये दिया। उन्होंने कहा “जहाँ ज़रूरत हो खाली स्थानों को भर दो,” साथ ही यह भी जोड़ा “इसे मैंने बहुत भारी तनाव में लिखा है।”
इसके बाद गांधीजी ने अपना स्नान संपन्न किया। स्नान के बाद मनु ने बापू का (जो लगभग पाँच फुट पाँच इंच लम्बे थे) वजन लिया। वे 109 1/2 पाउन्ड के थे। उपवास के बाद से उनका ढाई पाउन्ड वज़न बढ़ गया था। उनकी त़ाकत भी धीरे-धीरे लौट रही थी। प्यारेलाल को भी ऐसा लगा कि स्नान के बाद बापू तरोताज़ा लग रहे थे। पिछली रात का तनाव मानो ख़त्म हो गया था।
सुबह साढ़े नौ बजे उन्होंने अपना सुबह का भोजन लिया, जिसके पहले उन्होंने बंगला लेखन का दैनिक अभ्यास किया। अपनी ऐतिहासिक नोआखली यात्रा के दौरान उन्होंने बंगला भाषा सीखने का प्रयास आरम्भ किया था जिसे उन्होंने जीवन के अन्तिम दिन तक जारी रखा। आज उन्होंने लिखा “भैरव का घर नैहाटी में है। शैल उसकी बड़ी पुत्री है। आज शैल का कैलाश के साथ विवाह है।”
अभी वे अपना प्रातः का भोजन कर ही रहे थे, जिसमें 12 आउंस बकरी का दूध, कच्ची और पकी सब्जियाँ, सन्तरे, चार टमाटर, गाजर का रस, अदरक, नींबू और एलो का निचोड़ था, जब प्यारेलाल उनके पास कांग्रेस के संविधान का मसौदा लेकर आए। गांधीजी ने ध्यान से हर संषोधन को देखा और पंचायत नेताओं की संख्या में गिनती के दोष को सुधारा।
वर्ष 1920 में जब कांग्रेस की बागडोर गांधीजी को सौंपी गई थी तब उन्होंने सबसे पहले इसके लिये एक संविधान तैयार किया, जिसके साथ कांग्रेस स्वाधीनता संग्राम के निर्णायक दौर में पहुँची। जीवन के अंतिम दिन भी वे कांग्रेस के लिये नया संविधान तैयार करने में लगे हुए थे जिसके आधार पर स्वाधीन भारत का संचालन होना था। आज मानो उनका जीवन चक्र पूर्णता को प्राप्त कर रहा था।
थोड़ी देर विश्राम के बाद उन्होंने मिलने आनेवालांे से भेंट की। दिल्ली से कुछ मौलवी आए हुए थे, जिन्होंने उनके वर्धा जाने के विचार को अपनी सहमति दी। गांधीजी ने उन लोगों से कहा कि वे थोड़े ही समय के लिये अनुपस्थित रहेंगेः “हाँ, यह और बात है कि ईष्वर की इच्छा कुछ और हो और कोई अनसोची घटना घट जाए।”
उन्होंने बिषन से कहाः: “मेरे ज़रूरी पत्र मुझे दे दो। मुझे उनके जवाब आज ही देने चाहिये, क्या पता कल मैं रहूँ न रहूँ।”
अपने जीवन के अन्तिम दिन में गांधीजी ने अपने अतिप्रिय स्वर्गीय सचिव श्री महादेव देसाई का भी स्मरण किया। महादेव भाई की जीवनी लिखी जानी थी, परन्तु कुछ आर्थिक पहलुओं पर असहमति हो रही थी। गांधीजी ने इस बारे में अपनी खिन्नता प्रकट की। महादेव की डायरियों का संपादन और संकलन भी होना था। इस कार्य के लिये आदर्ष व्यक्ति, श्री नरहरि पारीख अस्वस्थ थे। गांधीजी ने निर्णय किया कि यह कार्य श्री चन्द्रषेखर षुक्ल को सौंपा जाए। श्री मषरूवाला भी इस कार्य के लिये योग्य दावेदार थे।/p>
महात्मा गांधी श्री सुधीर घोष से भी मिले, जिन्होंने उन्हें बताया कि किस प्रकार ब्रिटिष प्रेस में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तथा उप-प्रधानमंत्री श्री सरदार वल्लभभाई पटेल के बीच के मतभेदों को उछाला जा रहा था। गांधीजी इस विषय में आज दोपहर को सरदार पटेल से मिलने वाले थे और आज ही षाम सात बजे नेहरू तथा मौलाना आज़ाद से बातचीत करने वाले थे।
गांधीजी से मिलने एक सिन्धी प्रतिनिधिमण्डल आया। उनके कष्टों से उन्हें बहुत पीड़ा पहुँची। गांधीजी ने उन लोगों को बताया कि किस प्रकार एक षरणार्थी ने उन्हें संसार छोड़कर हिमालय में बसने की सलाह दी। हँसते हुए उन्होंने कहा कि यह तो एक दृष्टि से बहुत अच्छा होगा क्योंकि फिर वे दोहरे महात्मा बन जाएंगे और अपनी ओर और भी बड़ी भीड़ को आकर्षित कर सकेंगे। लेकिन वे प्रसिद्धि नहीं चाहते थे, वे एक ऐसी षक्ति और षान्ति चाहते थे जिससे लोगों को चारों ओर फैले अंधकार और दुःख में से बाहर निकाल सकें।
गांधीजी जनवरी की सुहानी धूप में लेट गए और अपने पेट पर मिट्टी का लेप लगाया। अपने चेहरे को उन्होंने नोआखली से लाई हुई बाँस की टोपी से ढक लिया। मनु और आभा उनके पैर दबाने लगीं।
दोपहर 1.30 बजे के लगभग बृजकृष्ण ने गांधीजी को मास्टर तारा सिंह का सन्देष पढ़कर सुनाया जिसमें उन्हें हिमालय जाकर बसने को कहा गया था। पिछले दिन ही एक षरणार्थी ने उनसे ऐसी बात कही थी, जिससे उन्हें चोट पहुँची थी। गांधीजी ने इसके बाद गाजर और नींबू का रस लिया। कुछ दृष्टिहीन और बेघर षरणार्थी उनसे मिलने आए। उन्होंने बृजकृष्ण को उनके बारे में कुछ हिदायते दीं। इसके बाद उन्हें इलाहाबाद मे हुए दंगों की रिपोर्ट पढ़ कर सुनाई गई।
समय बीतता जा रहा था। अब मध्यदोपहरी थी।
दैनिक साक्षात्कारों का सिलसिला लगभग 2.15 बजे फिर आरम्भ हुआ। भारतवर्ष से तथा विदेषों से भी आए अनेक लोग उनसे मिलना चाहते थे। दो पंजाबी उनसे अपने ज़िले में हरिजनों के विषय में बोले। फिर बारी आई दो सिन्धियों की। श्रीलंका के एक प्रतिनिधि अपनी बेटी के साथ उनसे मिलने आए और उनसे श्रीलंका के स्वाधीनता दिवस (14 फरवरी) के लिये संदेष देने का अनुरोध किया। उनकी बेटी ने गांधीजी के हस्ताक्षर लिये, जो उनका अन्तिम हस्ताक्षर सिद्ध हुआ। दोपहर तीन बजे उनसे एक प्रोफेसर मिलने आए और उन्होंने गांधीजी से कहा कि जो वे आज सीख दे रहे हैं वह बुद्ध के समय में दी गई थी। लगभग 3.15 बजे फ्रांस के प्रसिद्ध फोटोग्राफर हेनरी कार्टियर-ब्रेसन ने उन्हें अपने चित्रों की एल्बम भेंट दी। गांधीजी एक पंजाबी तथा एक सिंधी प्रतिनिधिमंडल से मिले जिन्होंने उनसे दिल्ली में 15 फरवरी को आयोजित होने वाले सम्मेलन के लिये अध्यक्ष पद के लिये सुझाव मांगा। गांधीजी ने कांग्रेस अध्यक्ष डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद का नाम सुझाया तथा अपने संदेष देने की बात भी की।
चार बजे तक गांधीजी ने अन्तिम साक्षात्कार समाप्त किया। अब सरदार पटेल के आने का समय भी हो गया था। ठीक चार बजे सरदार पटेल अपनी पुत्री तथा सचिव मणिबेन के साथ आ गए। गांधीजी और सरदार पटेल तत्काल ही विचार-विमर्ष में लीन हो गए।
गांधीजी के उपवास से आई स्थिति में नरमी के बावजूद सरदार पटेल तथा नेहरूजी के बीच आए मतभेदों से गांधीजी अवगत थे तथा इसी कारण से चिन्तित भी थे। वे चाहते थे दोनों के विचारों में मेल रहे।
गांधीजी ने सरदार पटेल से कहा कि यद्यपि उन्होंने पहले सोचा था कि सरदार पटेल अथवा नेहरूजी, दोनों में से किसी एक को मंत्रिमण्डल छोड़ना होगा, परन्तु अब वे भारत के नए गवर्नर जनरल माउन्टबैटेन से सहमत थे कि दोनों ही का होना ज़रूरी था। उन्होंने सरदार पटेल से कहा कि ‘वे षाम की प्रार्थना सभा में यह कहेंगे और नेहरू से भी यही कहेंगे। उन्होंने कहा कि दोनों के बीच किसी मुष्किल स्थिति में वे अपना वर्धा जाना भी स्थगित कर सकते हैं।
सायं 4.30 बजे आभा उनका अन्तिम भोजन लेकर आई: उसमें बकरी का दूध, पकी तथा कच्ची सब्ज़ियाँ, सन्तरे और अदरक, नींबू, मक्खन और एलो का जूस था। अपने कमरे में फर्ष पर बैठकर उन्होंने अपना अन्तिम भोजन लिया तथा सरदार पटेल से बातचीत भी जारी रखी। मणिबेन, सरदार की पुत्री तथा सचिव भी इस बातचीत के दौरान उपस्थित थीं।
अभी गांधीजी और सरदार पटेल की बातचीत चल ही रही थी कि दो काठियावाड़ी नेता आए और मनु से गांधीजी से मिलने की इच्छा प्रकट की। मनु के पूछने पर गांधीजी ने सरदार पटेल के सामने कहा,“उनसे कहो कि मैं उनसे मिलूँगा, लेकिन प्रार्थना सभा के बाद, और वह भी तब यदि मैं जीवित रहा। हम तब बातचीत करेंगे।” मनु ने गांधीजी का उत्तर अतिथियों को दे दिया और उनसे प्रार्थना सभा के लिये रूकने को कहा।Yet again, फिर से गांधीजी ने अपनी मृत्यु की संभावना की बात की थी और इस बार तो उन्होंने यह बात अपनी सुरक्षा के लिये मुख्य रूप से ज़िम्मेदार व्यक्ति के सामने ही कही थी।
उसके बाद गांधीजी ने अपना प्रिय चर्खा मांगा और अन्तिम बार बड़े प्रेमपूर्वक चर्खा काता। मौलाना आजा़द और जवाहरलाल नेहरू उनसे प्रार्थना के बाद मिलने वाले थे।
सायं 5.00 बजे आभा ने गांधीजी को घड़ी दिखाई। गांधीजी उठे, अपनी चप्पल पहनी और कमरे के किनारे वाले दरवाजे़ से षाम के धुंधलके में बाहर निकल आए। उन्होंने ठंड के कारण गरम षाॅल ओढ़ रखी थी। आभा और मनु के साथ वे प्रार्थना स्थल की ओर बढ़ने लगे, जिन्हें वे अपनी ‘लाठियां’ कहते थे। आज उन्हंे प्रार्थना में देर हो गई थी। उन्होंने कहा “मैं दस मिनट लेट हो गया हूँ, और मुझे देरी बिल्कुल नापसन्द है। मुझे ठीक पाँच बजे यहाँ होना चाहिये।” मनु उनकी दायीं तरफ तथा आभा बायीं तरफ थी। और इस तरह महाप्रयाण की ओर निकल पड़े महात्मा गांधी। जीवन-यात्रा का आरम्भ उन्होंने पोरबन्दर से किया और वह राजकोट, इंग्लैण्ड के इनरटेम्पल, मुम्बई, डरबन, पीटर मारित्ज़बर्ग, जोहान्सबर्ग, फीनिक्स आश्रम, टाॅलस्टाॅय फार्म, चम्पारण, साबरमती, यरवदा, दांडी, किंग्स्ले हाॅल, सेन्ट जेम्स पैलेस, स्विट्ज़रलैण्ड, रोम, सेवाग्राम, आग़ा ख़ा महल, नोआखली, कोलकाता होते हुए अन्तिम पड़ाव दिल्ली तक आ पहुँचे।
आज वे बग़ीचे के दायीं ओर लताओं से घिरे परगोलों के रास्ते से नहीं आ रहे थे। देर के कारण उन्होंने बग़ीचे के बीच का रास्ता लिया था जो सीधा प्रार्थना स्थल को जाता था।
उपस्थित भीड़ हज़ारों की संख्या में थी जिसमें साधारण वस्त्रों में 20 पुलिसकर्मी भी मौजूद थे। सीढ़ियों पर पहुँचकर गांधीजी ने भीड़ के अभिवादन के लिये हाथ जोड़े। सदा की तरह लोगों ने उनके लिये रास्ता बनाया। संयोगवष आज गांधीजी के आगे कोई नहीं था।
और अब वह चरम मुहुर्त आ गया था जब गांधीजी ने अमरत्व की ओर अन्तिम पग लिये।
छटी हुई भीड़ में से हत्यारे ने गांधीजी को अपनी ओर आते देखा। उसने हत्या की योजना को बदलते हुए उसी समय निर्णय लिया कि वह उनको इसी समय एकदम नज़दीक से गोलियों का निषाना बनाएगा। गांधीजी सीढ़ियों से दो चार कदम आगे आ गए थे। हत्यारा राह बनाता हुआ हाथ जोड़े हुए उनकी ओर बढ़ने लगा। उन जुड़े हाथों के भीतर छोटी सी विदेषी बेरेटा पिस्तौल छुपी हुई थी। वह झुका और बोला, “नमस्ते गांधीजी।” गांधीजी ने उत्तर में हाथ जोड़े। मनु को लगा कि वह व्यक्ति गांधीजी के पैर छूने जा रहा था, जो बापू को पसन्द नहीं था। मनु ने उससे कहा “भाई, बापू को पहले ही प्रार्थना के लिये देर हो गई है। आप क्यों उन्हें परेषान कर रहे हैं?”
गांधीजी को अपने जीवन पर और एक हमले का पूर्वाभास था। जब यह सब हो रहा था वे षायद समझ गए हों कि ..यही वह क्षण है।
हत्यारे ने बाएँ हाथ से मनु को ज़ोर से धकेल दिया और तभी उसके दाएँ हाथ में छुपी पिस्तौल भी दिख गई। मनु के हाथ से सभी चीजे़ नीचे गिर गईं। कुछ समय तक वह इस अनजान हत्यारे से बहस करती रही। पर तभी हाथ से पूजा की माला गिर जाने पर वह उसे उठाने के लिये जै़से ही झुकी उसी समय ...... षान्त वातावरण को भेदती हुई तीन गोलियों की भयानक आवाज़ ने सबको स्तब्ध कर दिया। आततायी ने गांधीजी के षरीर में तीन गोलियाँ उतार दी थी। तीसरी गोली लगने तक गांधीजी खड़े ही थे, हाथ भी जुड़े हुए थे, और फिर उनके मुँह से काँपते स्वरों में निकला “हे राम, हे राम।” फिर व्यक्तिगत अहिंसा के अन्तिम चरण में वे धीरे-धीरे धरती पर गिर गए। हाथ अब भी जुड़े हुए ही थे। वातावरण में धुआँ भर गया था। चारों ओर दहषत भरी भगदड़ सी मच गई थी। दोनों पोतियों की गोद में सिर रखे महात्मा गांधी धरती पर गिरे हुए थे। उनका चेहरा विवर्ण हो गया था और सफेद षाॅल धीरे-धीरे रक्त-रंजित होती जा रही थी। वेदना के इस असहनीय क्षण को झेलने मंे असमर्थ कुछ ही पलों में महात्मा गांधी का देहावसान हो गया था। सूर्य भी अपनी अन्तिम किरणों को समेट क्षितिज के उस पार विलुप्त हो गया मानो इस मर्मान्तक घटना के साक्षी होने के अपराध-बोध को सहन नहीं कर पा रहा हो।
शाम के 5.17 हुए थे। भारत और विष्वभर में फैले उनके असंख्य मित्र, सहयोगी इस विष्वास के साथ निष्चिन्त थे कि उनके प्रिय बापू जीवित हैं।
आभा और मनु अन्य लोगों की सहायता से गांधीजी को बिड़ला हाउस स्थित उनके कमरे में ले गईं। उनके नेत्र अधखुले थे और ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वे जीवित हों। सरदार पटेल जो कुछ ही समय पहले गांधीजी के पास से गए थे, वापस फिर उनके पास आ गए थे। नब्ज़ देखते हुए उन्हें लगा मानो साँसें चल रहीं हों। दवाई के बक्से में एड्रिनेलिन ढूंढी गई पर नहीं मिली।
एक व्यक्ति डाॅ. डी. पी. भार्गव को साथ लेकर आया। गोली लगने के दस मिनट बाद जब डाॅ. भार्गव ने गांधीजी की जाँच की तो कहा “दुनिया की कोई षक्ति उन्हें नहीं बचा सकती थी। उनकी मृत्यु दस मिनट पहले हो चुकी थी।”
गांधीजी के नियमित युवा परिचारक उनके षरीर के पास बैठ कर सुबक रहे थे। डाॅ. जीवराज मेहता आए और बापू की मृत्यु की पुष्टि की। तभी भीड़ में आवाजें उभरी “जवाहरलाल नेहरू जी आ गए हैं।” वे गांधीजी के पास बैठे और उनके ख़ून से सने वस्त्रों में मुँह छुपा कर रोने लगे। इसके बाद वहाँ बापू के सबसे छोटे पुत्र देवदास, षिक्षा मंत्री मौलाना आज़ाद और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी पहुँचने लगे।
देवदास ने पिता के षरीर को छूकर देखा तो पाया कि वह अभी भी गर्म था। उनका सिर आभा की गोद में था और चेहरे पर एक षान्त मुस्कान थी। ऐसा लग रहा था मानो वे सो रहे हों। उस पल को याद करते हुए देवदास ने बाद में लिखा “हम लोग रात भर उनके पास बैठे रहे। उनका चेहरा इतना षान्त था और षरीर को घेरती हुईं ऐसी सौम्य दिव्य ज्योति व्याप्त थी कि षोक मनाना मानो अपराध हो।”
बाहर, एक विषाल जनसमूह एकत्रित हो गया था जो अपने प्रिय बापू के अन्तिम दर्षन को व्याकुल था। बिड़ला हाउस की छत पर उनके नष्वर षरीर को उज्जवल प्रकाष में इस प्रकार रखा गया कि नीचे सभी लोग उनके दर्षन कर सकें। हज़ारो लोग वहाँ मौन होकर, विलाप करते हुए गुज़रे।
मध्यरात्रि के आसपास उनके षरीर को पुनः नीचे कमरे में ले जाया गया। सारी रात षोकाकुल लोग सुबकियों के बीच श्रीमद़ भगवतगीता तथा अन्य धर्मग्रन्थों का पाठ करते रहे। इस प्रकार 30 जनवरी 1948 की उस कालरात्रि का अन्त हुआ । परन्तु “मेरा जीवन ही मेरा सन्देष है” की वाणी में कालजयी हो गए हैं महात्मा गांधी।
परन्तु “मेरा जीवन ही मेरा सन्देष है” की वाणी में कालजयी हो गए हैं महात्मा गांधी।