गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति: एक रूपरेखा
गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति का गठन 1984 में राजघाट स्थित गांधी दर्शन एवं 5, तीस जनवरी मार्ग स्थित गांधी स्मृति के विलय द्वारा 1984 में एक स्वायत्त निकाय के रूप में हुआ था और यह भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के रचनात्मक सुझाव और वित्तीय सहायता के तहत कार्यशील है। भारत के प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष है और इसके पास वरिष्ठ गांधीवादियों एवं सरकार के विभिन्न विभागों के प्रतिनिधियों का एक मनोनीत निकाय है जो इसे इसकी गतिविधियों के लिए दिशा निर्देश देते हैं। समिति का मूलभूत उद्देश्य और लक्ष्य विभिन्न सामाजिक-शैक्षणिक तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिये महात्मा गांधी के जीवन, मिशन एवं विचारों को प्रचारित करना है।
समिति के दो परिसर है:
गांधी स्मृति
5, तीस जनवरी मार्ग, नई दिल्ली के पुराने बिड़ला भवन पर स्थित गांधी स्मृति वह पवित्र स्थल है जहां महात्मा गांधी ने अपने नश्वर शरीर का 30 जनवरी, 1948 को त्याग किया था। महात्मा गांधी इस घर में 9 सितंबर, 1947 से 30 जनवरी, 1948 तक रहे थे। इस भवन में उनके जीवन के अंतिम 144 दिनों की स्मृतियां संजोई हुई हैं। पुराने बिड़ला भवन को भारत सरकार ने 1971 में अधिग्रहित कर लिया और इसे राष्ट्रपिता के राष्ट्रीय स्मारक के रूप में परिवर्ति त कर दिया जिसे 15 अगस्त 1973 को आम जनता के लिए खोल दिया गया।
यहां जो जगह संरक्षित हैं उनमें वह कमरा, जिसमें गांधी जी रहते थे और वह प्रार्थना मैदान जहां आम जनसभा होती थी, शामिल है। इसी स्थान पर गांधी जी हत्यारे की गोलियों के शिकार हुए। भवन और परिदृश्य को उसी प्रकार संरक्षित रखा गया है जिस प्रकार वे उन दिनों थे।
इस स्मारक की संरचना में शामिल हैं:
- महात्मा गांधी और उनके उन महान आदर्श, जिनका वे प्रतिनिधित्व करते थे, की याद को बनाये रखने के लिए दृश्यात्मक पहलू
- जीवन के कुछ खास मूल्यों, जिन्होंने गांधी को महात्मा बनाया, पर ध्यान केंद्रित करने के लिए शैक्षणिक पहलू और
- सेवा से संबंधित गतिविधियां
संग्रहालय में जो चीजें प्रदर्शित की गई हैं, उनमें गांधी जी ने जितने वर्ष यहां व्यतीत किए हैं उनसे संबंधित तस्वीरें, वस्तु शिल्प, चित्र, भित्तिचित्र, शिलालेख और स्मृति चिन्ह शामिल हैं। गांधी जी की कुछ व्यक्तिगत ज़रूरत की चीज़ों को भी बहुत संभाल कर यहां संरक्षित किया गया है।
इसका प्रवेश द्वार भी बहुत ऐतिहासिक महत्व का है क्योंकि इसी द्वार के शीर्ष से प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने दुनिया को महात्मा गांधी की मृत्यु हो जाने की सूचना दी थी ‘....हमारे जीवन से प्रकाश चला गया है और हर जगह अंधेरा छा गया है....’
महात्मा गांधी की एक आदमकद प्रतिमा जिसमें खगोल से निकलते हुए एक लड़का और एक लड़की अपने हाथों में एक कबूतर को थाम कर उनकी बगल में दोनों तरफ खड़े हुए हैं, जो ग़रीबों और वंचितों के लिए उनकी सार्वभौमिक चिंता को दर्शाती है, गांधी स्मृति के मुख्य प्रवेश स्थल पर आगंत ुकों का स्वागत करती है। यह विख्यात मूर्ति कार श्री राम सुतार की कृति है। मूर्ति के निचले हिस्से पर बापू का कथन उल्लिखित है, ‘मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।’
जहां राष्ट्रपिता की हत्या हुई थी, वहां एक शहीद स्तंभ बनाया गया है। यह महात्मा गांधी की शहादत की याद दिलाता है तथा उन सभी कष्टों और कुर्बानियों के मूर्त रूप का स्मरण करता है जो भारत की स्वतंत्रता की लंबी लड़ाई की विशेषता रही है।
स्तंभ के चारों तरफ श्रद्धालुओं के लिए एक श्रद्धापूर्ण परिक्रमा करने के लिए पत्थर का एक विस्तृत मार्ग बनाया है। स्तंभ के सामने एक चैड़ी जगह बनाई गई है जिस पर श्रद्धांजलि अर्पित कर सकें। स्तंभ के निकट निचले मैदान पर गुरुदेव टैगोर के शब्द हैं, ‘वह प्रत्येक झोपड़ी की देहरी पर रूके थे।’
प्रार्थना स्थल के केंद्र में एक मंडप है जिसकी दीवारों पर भारत की सांस्कृतिक यात्रा की अनवरतता, दुनिया के साथ उसके संबंध एवं एक ‘सार्वभौमिक व्यक्ति’ के रूप में महात्मा गांधी के उद्भव और उनके व्यक्तित्च में सन्निहित मानव जीवन की सभी दैवीय चीजों का चित्रण करते भित्तिचित्र हैं ठीक वैसा ही जैसा कि उन्होंने कहाः ‘मेरी भौतिक आवश्यकताओं के लिए मेरा गांव मेरी दुनिया है लेकिन मेरी आध्यात्मिक जरूरतों के लिए संपूर्ण दुनिया मेरा गांव है।’
मंडप के बाहर लाल बलुशाही पत्थर से निर्मित एक बेंच है, जिस पर महात्मा गांधी प्रार्थना के दौरान या विशाल जनसमूह से, जो उन कष्टकारी दिनों में उनसे सलाह लेने और शांति पाने के लिए पुराने बिड़ला भवन के लाॅन में एकत्र होते थे, बातचीत के दौरान बैठा करते थे।
हरी घास का मैदान प्रार्थना स्थल की मुख्य विशेषता है जो सफेद फूलों की सजावटपूर्ण परिधि से चारों तरफसे घिरा हुआ है। स्मारक स्थल के प्रवेश के दाहिने लाॅन के निकट खुदा हुआ है ‘गांधीजी के सपनों का भारत।’ प्रार्थना स्थल के निकट के घुमावदार मार्ग पर अल्बर्ट आइंस्टीन के शब्द लिखे हुए हैं ’’आने वाली पीढ़ियां मुश्किल से यकीन करेंगी....।’’ घुमावदार मार्ग के केंद्र में विख्यात कलाकार शंख चैधरी की कांसे में एक कृति है जो गांधी जी द्वारा अपने बलिदान से जलाई गई ‘शाश्वत शिखा’ का प्रतीक है।
गांधी स्मृति में गांधी जी के कमरे को ठीक उसी प्रकार रखा गया है जैसा यह उनकी हत्या के दिन था। उनकी सारी चीजें, उनका चश्मा, टहलने की छड़ी, एक चाकू, कांटा और चम्मच, वह खुरदुरा पत्थर जिसका इस्तेमाल वह साबुन की जगह करते थे, प्रदर्शन के लिए रखी गई हैं। उनका बिस्तर फर्श पर बिछी एक चटाई पर था जो सफ़ेद और सादा था जिसकी बगल में लकड़ी की एक नीची तख्ती रखी रहती थी। भगवद् गीता की एक पुरानी और उनके द्वारा उपयोग में आ चुकी एक प्रति भी रखी हुई हैं।
पूरे भवन को अब विभिन्न खंडों में विभाजित कर दिया गया है। भवन के मुख्य प्रवेश के दोनों तरफ महात्मा द्वारा रचित ‘ए सर्वेंटस प्रेयर यानी एक सेवक की प्रार्थना’, और उनका शाश्वत-संदेश उनका जन्तर प्रदर्शित किया गया है।
मोहनदास करमचंद गांधी के महात्मा गांधी के रूप में क्रमिक विकास का चित्रण सरल व्याख्यान के साथ श्वेत-श्याम चित्रों की एक पट्टी के जरिये किया गया है। दक्षिणी हिस्से में एक सभागार और एक समिति कक्ष भी है।
इसके अतिरिक्त, प्रदर्शनी का समायोजन इस प्रकार किया गया है कि दक्षिणी हिस्सा मोहनदास करमचंद गांधी नामक एक बालक की जीवन यात्रा और उसके क्रमिक विकास और किस प्रकार अपने ‘सत्य के प्रयोगों’ के जरिये उसने भारत और मानवता के उद्धार का नेतृत्व किया, का सरल चित्रण दर्शाता है।
उत्तरी हिस्से में पांच विभिन्न खंड हैं। पहला खंड, उस कमरे की ओर जाने वाली एक गैलरी है जिसमें गांधी जी ने अपने जीवन के अंतिम 144 दिन व्यतीत किए। यह खंड शांति और शहादत की उनकी यात्रा को समर्पित है। इसके आगे दूसरा खंड है, यह एक अन्य कक्ष है जिसमें उनके जीवन के अंतिम 48 घंटों पर विशेष ध्यान केन्द्रित किया गया है जिसकी परिणति उनकी शहादत में हुई। इस खंड में एक सभागार भी है जिसमें महात्मा गांधी पर आधारित फिल्में दिखाने की सुविधाएँ मौजूद हैं।
उत्तरी हिस्से का तीसरा खंड ‘गांधीजी के सपनों का भारत’ और उन नियमों और सिद्धांतों को प्रदर्शित करता है जो इस सपने को साकार करने के लिए भावी पीढ़ियों के लिए वे अपनी विरासत के रूप में छोड़ कर गए हैं-18 सूत्री रचनात्मक कार्यक्रम। गांधी जी दुनिया के सामने वैज्ञानिक सुस्पष्टता के साथ भारत को विकास के एक माॅडल के रूप में प्रस्तुतकरना चाहते थे। उनकी जीवन यात्रा समाप्त हो चुकी-राष्ट्रपिता दुनिया से चले गए है, लेकिन उनकी धरोहर अभी भी शेष है, और सबसे बढ़कर, एक अधूरा सपना एक चुनौती के रूप में हमारे सामने है और वह है ‘उनके सपनों के भारत का निर्माण करना।’
चैथे खंड सुमना में कुल मिलाकर 28 अहाता/पट्टियाँ हैं। इस खंड में त्रिआयामी लघुचित्र स्थित हैं। इनमें महात्मा गांधी के जीवन की, उनके बचपन से शहादत तक की महत्वपूर्ण घटनाओं का चित्रण है। श्रीमती सुशीला रजनी पटेल द्वारा सृजित संग्रहालय का यह हिस्सा एक समृद्ध अनुभव प्रदान करता है।
पाँचवे खंड सन्मति, गांधी स्मृति साहित्य केंद्र में एक छत के नीचे उपलब्ध गांधी साहित्य एवं अन्य संबंधित पुस्तकों का एक विशाल संकलन है। एक विशेष खंड इसका व्याख्यान करने को समर्पित है कि किस प्रकार दुनिया महात्मा गांधी का सम्मान करती है।
पहले हिस्से में महात्मा गांधी के शानदार जीवन को कलाकारों की नज़रों से प्रदर्शित किया गया है। दूसरा हिस्सा गांधी द्वारा स्वयं पर की गई चर्चा है।
दीर्घा के मध्य में, लोगों को 2 मि. 30 सेकेंड के एक मल्टी मीडिया एनीमेशन के द्वारा समावेशित, आत्मलीन और महात्मा गांधी की उपस्थिति का अहसास कराया जाता है जिसमें उनके बनिदान की दिशा में राष्ट्रपिता की अंतिम यात्रा का वर्णन है। इसे विख्यात गायक कुमार गंधर्व के गायन द्वारा चित्रित किया गया है।
गांधी स्मृति परिसर में बने परगोला में सामयिक प्रदर्शनियाँ लगाई जाती हैं तथा अभी इसमें राष्ट्रीय अभिलेखागार द्वारा निर्मित विशेष प्रदर्शनी ‘मोहन से महात्मा’ प्रदर्शित है जिसको वरिष्ठ गांधीजन श्री अनुपम मिश्र के मार्गनिर्द ेशन में तैयार किया गया है। इस प्रदर्शनी का उद्घाटन गांधी जयन्ती, 2 अक्तूबर, 2015 को माननीय संस्कृति मंत्री तथा समिति के उपाध्यक्ष डाॅ. महेश शर्मा द्वारा किया गया।
अपनी यात्रा के दौरान आगंतुक एक भव्य ‘विश्व शांति घंटे’ का भी दर्शन करते हैं। इस स्थान पर 31 जनवरी, 1948 को राष्ट्रपिता के भौतिक अवशेष हज़ारों लोगों द्वारा श्रद्धांजलि दिए जाने के लिए रखे गए थे। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने गांधी स्मृति को यह विश्व शांति घंटा भेंटस्वरूप दिया था। विदेश मंत्रालय को शांति घंटा इंडोनेशिया की विश्व शांति घंटा समिति से प्राप्त हुआ था और इसका उद्घाटन 11 सितंबर, 2006 को सत्याग्रह के 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर आयोजित एक विशेष समारोह में किया गया था। यह विश्व को दुनिया भर के शांतिदूतों द्वारा किए गए बेशुमार संघर्ष की याद दिलाता है और एक दूसरे के साथ शांति के साथ सद्भावनापूर्ण तरीके से जीने का संदेश देता है।
यहां से आगंतुकों को उस कक्ष में ले जाया जाता है जहां बापू जी ने अपने जीवन के अंतिम 144 दिन व्यतीत किए। जब वे इस कक्ष से बाहर आते हैं तब वे फोटो प्रदर्शनी जिसके साथ-साथ प्रत्यक्षदर्शियों की आखों देखी घटनाओं के विवरण भी शामिल होते हैं, के माध्यम से इन 144 दिनों के इतिहास से परिचित हो चुके होते हैं। गांधी स्मृति में सृजन, खादी, कुटीर उद्योग एवं ग्रामीण विकास पर गांधीवादी दृष्टिकोण को प्रदर्शित करता है।
गांधी स्मृति में शहीद स्तंभ के निकट कीर्ति मंडप पंडाल, जिसका नाम विख्यात सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान ने रखा है, के पास बड़े कार्यक्रमों के लिए 500 भागीदारों को समायोजित करने की क्षमता है।
समाज के वंचित वर्गों को कंप्यूटर, सिलाई एवं कशीदाकारी, प्रारंभिक शिशु देखभाल एवं शिक्षा, समुदाय स्वास्थ्य, कताई एवं बुनाई, स्वांग एवं संगीत का कौशल प्रदान करने के लिए सृजन- गांधी स्मृति शैक्षणिक केंद्र की गांधी स्मृति में स्थापना की गई है। सृजन का उद्देश्य उन्हें इन व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को सीखने में सहायता करना है जिससे कि उनमें स्व-सहायता, आत्मविश्वास एवं आजीविका कमाने के प्रति सम्मान का भाव भरा जा सके।
2005 में संग्रहालय में ‘शाश्वत गांधी’ शीर्षक की एक मल्टीमीडिया प्रदर्शनी जोड़ी गई जो भवन की पहली मंजिल पर स्थित है। इसमें अत्याधुनिक इलैक्ट्राॅनिक हार्ड वेयर एवं नवीन मीडिया का उपयोग किया है जिससे कि गांधीजी के जीवन एवं दर्शन को जीवंत बनाया जा सके। दृष्टिकोण ऐतिहासिक एवं व्याख्यात्मक दोनों ही प्रकार का रहा है। 21वीं सदी की प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करती यह प्रदर्शनी गांधीवादी विचारों को रेखांकित करती है- सच के सिद्धांतों के प्रति सत्याग्रही की प्रतिबद्धता। फाइबर शीशे से निर्मित बा तथा बापू के दो प्रतिमाएं, जो थाईलैंड के दंपत्ति श्री देचा सैसोमबून एवं श्रीमती विपा सैसोमबून की कृतियां हैं, को भी मल्टी-मीडिया संग्रहालय में रखा गया है।
ये सभी तत्व गांधी स्मृति को एक संपूर्ण संग्रहालय बनाते हैं।