रचनात्मक कार्यक्रम: इसका अर्थ एवं महत्व
गांधीजी प्रतीक थे भारत की षाष्वत, चिरन्तन आत्मा के। अपने ‘रचनात्मक कार्यक्रम’ द्वारा उन्होंने भारत तथा पूरी मानवता के लिये एक क्रान्तिकारी मसौदा तैयार किया। इस कार्यक्रम के द्वारा उन्होंने एक आदर्ष समाज की परिपूर्ण कल्पना तथा निर्माण की प्रक्रिया हमें दी। यही वह आधार था जो व्यक्ति के भीतर परिवर्तन द्वारा सामाजिक परिवर्तन की दिषा में हमें राह दिखाता है। इस प्रक्रिया में व्यक्तिगत तथा सामाजिक बदलाव साथ-साथ घटित होते हैं तथा एक दूसरे के प्रतिपूरक होते हैं। ‘रचनात्मक कार्यक्रम’ द्वारा गांधीजी जनता को स्वाधीनता प्राप्ति के बाद के भारत-निर्माण के लिये तैयार कर रहे थे। इस परिकल्पना के बीज उनके जीवन में बहुत पहले जाॅन रस्किन की पुस्तक ‘अन्टू दिस लास्ट’ से ही पड़ गए थे जिन के क्रान्तिकारी विचारों ने उनके हृदय में ‘सर्वोदय’ को जन्म दिया। इस ध्येय को पाने के लिये समाज के सम्पूर्ण ढांचे को बदलना होगा। अहिंसक समाज का अन्य कोई आदर्ष हो ही नहीं सकता, अतः सामाजिक बदलाव सुनियोजित विकास द्वारा सम्भव होगा, हिंसापूर्ण गतिविधियों से नहीं। वे मानते थे कि सामाजिक संस्थान “व्यक्तियों के विचारों को नैतिक मूल्य प्रदान करने की अभिव्यक्ति है।” महात्मा गांधी जानते थे कि उनके विचार तथा आदर्षों का पालन उनकी सहजतापूर्ण सादगी के कारण हीे कई बार कठिन हो जाता था। “यह मेरा सौभाग्य अथवा दुर्भाग्य है कि मैं विष्व को आष्चर्यचकित करता रहा हूँ। कई बार नए प्रयोग अथवा नए तरीके से किये जा रहे प्रयोग भ्रान्तियाँ भी पैदा कर देते हैं।”
‘‘रचनात्मक कार्यक्रम को सत्य एवं अहिंसा के माध्यम से ‘‘पूर्ण स्वराज’’ की रचना का आधार कहा जाए तो यह अतिषयोक्ति नहीं होगी। आप मेरा विष्वास करें हम रचनात्मक कार्यक्रमों के विभिन्न पहलुओं को अंजाम देने में जितना विलम्ब करेंगें या अनमने भाव से अपनाएंगे स्वराज हमसे उतना ही दूर होता जायेगा। पूर्ण स्वराज की स्थापना अहिंसा एवं आत्म-षुद्धि के बिना असम्भव है। इसके लिए निम्नलिखित मुद्दों पर आस्था अनिवार्य है:
- साम्प्रदायिक एकता
- अस्पृष्यता निवारण
- नषाबन्दी
- खादी
- अन्य ग्रामोद्योग
- सफाई अभियान
- बुनियादी तालीम
- प्रौढ़ षिक्षा
- महिलाओं का उत्थान
- स्वास्थ्य एवं सफाई की षिक्षा
- प्रादेषिक भाषाएं
- राष्ट्रीय भाषा
- आर्थिक समानता
- किसान
- मज़दूर
- आदिवासी
- कुष्ठ रोगी
- विद्यार्थी