गाँधी स्मृति एवं दर्शन समिति द्वारा आज “भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में महात्मा गांधी का प्रभाव” विषय पर तीसरे ई क्षेत्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया. समिति द्वारा यह कार्यक्रम जमशेदपुर महिला कॉलेज जमशेदपुर के सहयोग से आयोजित किया गया. सम्मेलन में विश्व भारती शांति निकेतन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बिद्युत चक्रवर्ती मुख्या अतिथि थे.
इस अवसर पर अपने विचार प्रकट करते हुए प्रो चक्रवर्ती ने कहा कि वकील मोहनदास की महात्मा गांधी बनने की यात्रा को समझने के लिए हमें इतिहास में देखना होगा. पहले दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह, फिर चम्पारण आंदोलन से लेकर आजादी के संघर्ष में उनकी हिस्सेदारी. इस तरह एक संघर्षशील प्रक्रिया से गुजरकर वे महात्मा गांधी बने. आजादी की लडाई में उनका योगदान अविस्मरणीय है.आज़ादी के आन्दोलन में महात्मा गांधी का विशेष योगदान था.
विकास भारती बिशनपुर के संस्थापक सचिव पद्मश्री अशोक भगत ने कहा कि गांधी जी भारत की सनातन परंपरा को साथ लेकर चले. अपने गुरु गोखले की सलाह पर उन्होंने भारत का भ्रमण कर भारत को जाना. उनकी अहिंसा की अवधारणा भारत की ‘अहिंसा परमो धर्म:’ की पुरातन परंपरा से प्रेरित है. समिति निदेशक श्री दीपंकर श्री ज्ञान ने कहा कि गांधी जी के आंदोलन अहिंसा के प्रतीक है. वे अहिंसा को लेकर बहुत सजग थे. यही कारण है कि जब चौरी-चौरा में हिंसा हुई, तो उन्होंने तुरंत अपना आंदोलन वापस ले लिया. उनकी अहिंसा की अवधारणा आज भी प्रासंगिक है. सम्मेलन में जमशेदपुर महिला कॉलेज की प्राचार्य डॉ. शुक्ला मोहंती ने कहा कि आजादी की वर्षगांठ मनाना तभी सार्थक होगा, जब हम स्त्री की स्वतंत्रता सुनिश्चित करेंगे.इस अवसर पर सनातन दीप, राजदीप पाठक सहित अनेक गणमान्य लोगों ने भी अपने विचार रखे.
स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी का योगदान अविस्मरणीय
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